Monday, April 27, 2015



ऐ  ताज तू भी सर उठा
ख्वाब से जाग
दिल को अपना बना
मंजिले आसान
कहा होती है
ज़ुल्म सह , इश्क
 में ढल के
खुशियों में रोज़
रवा होती है
चाहे कैसी भी हो
हर रात जवां होती है
इंसान के हालत
ना हो खुश रहने के
होठो पर मुस्कुराहट
होती है

आराधना राय






















कष्ट सह कर जन्म मनुज लेता है
सदा इंसान ही कर्म में लीन रहता है

पीड़ सह ये धीर का विश्वास बनता है
मन में जगा ज़वाला हो अग्रसर सदा

मन में हो रोष ना समय कभी गवा यही
प्रदीप्त हो मार्ग प्रशस्त हो अग्रसर सदा

दीप जल रहे हो आशा के मुस्कुरा दे सदा
मन से मन के तार जुड़ रहे यहाँ ही सदा

कर्म से जुड़े रहे जो कर्म रत हो यही सदा
यही विश्वास ले कर चल तू भी यहाँ सदा

कॉपी राइट @आराधना राय